२६ फरवरी , ११७३

 

 'क' माताजी के आगे प्रश्रों की एक तालिका पढ़कर सुनाता हैं

जिसका अध्यापकों को उत्तर देना है ।

 

'क' : और अब हमारा अंतिम प्रश्र यह है : ''माताजी ने लिखा था कि बच्चों के मन में खेल और काम में कोई फर्क न होना चाहिये विशेषकर छोटे बच्चों के लिये जिनमें पढ़ने का आनंद रस ले आन? चाहिये  यह कैसे किया जाये कि काम और खेल मैं फर्क न हो ? आपका कोई सुझाव है ? ''

 

सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं मां-बाप और उनका विद्यालय... विद्यालय... विद्यालय जाना । ज्यादा अच्छा है कि हम उनसे यह न कहें : ''तुम विद्यालय जा रहे हो... ।आ रहे हो... । आज हम अमुक-अमुक खेल खलंगा... आज अमुक-अमुक खेल खेलों । '' और इसी तरह । लेकिन मां-बाप? जो यहां अपने मां-बाप के बिना हैं बे ....

 

   'क' : विशेषाधिकार प्रान्त हैं

 

 हां, बहुत विशेषाधिकार!

 

थोडी देर बाद 'क' ने माताजी है पूछा कि क्या आपको अध्यापकों

से कुछ और पूछना हैं ? बहुत देर चुप रहने के बाद माताजी ने

हंसते हुए कहा :

 

 मेरा सिर खाली हैं ।